सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हुआ। इसे पृथ्वी सम्मेलन कहा जाता है। इस सम्मेलन में 170 देशों, हजारों स्वयंसेवी संगठनों एवं अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। वैश्विक राजनीति के दायरे में पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकारों को इस सम्मेलन में एक ठोस रूप मिला। इस सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्व के धनी एवं विकसित देश अर्थात् उत्तरी गोलार्द्ध तथा निर्धन और विकासशील देश अर्थात् दक्षिणी गोलार्द्ध पर्यावरण के अलग-अलग एजेंडे के समर्थक हैं। उत्तरी गोलार्द्ध के देशों की मुख्य चिन्ता ओजोन परत में छेद एवं वैश्विक तापवृद्धि को लेकर थी। दक्षिणी देश आर्थिक विकास और पर्यावरण प्रबन्धन के आपसी रिश्तों को सुलझाने के लिए अधिक चिन्तित थे। रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता एवं वानिकी के सम्बन्ध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए। इसमें एजेंडा-21 के रूप में विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाये गये। इस सम्मेलन में इस बात पर भी सहमति बनी कि आर्थिक वृद्धि का तरीका ऐसा होना चाहिए कि इससे पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे। इसे टिकाऊ विकास का तरीका कहा गया।