भारत में नगरीकरण के प्रभाव- भारत में नगरीकरण के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव रहे हैं, जिनको क्रमशः विवरण निम्नलिखित हैसकारात्मक प्रभाव-सकारात्मक प्रभावों को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता है
1. व्यक्तिवादी भावना- वर्तमान समय में पाश्चात्य सभ्यता के कारण नगरों में व्यक्तिवादिता की भावना का उदय हुआ है। वहाँ सामूहिकता और पारिवारिकता के स्थान पर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हितों को ही अधिक महत्व देने लगा है।
2. सामाजिक गतिशीलता- नगरीकरण के कारण सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है। एक व्यक्ति अच्छे अवसर प्राप्त होने पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने तथा अपने पद, वर्ग एवं व्यवसाय को बदलने को तैयार रहता है।
3. आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव- नगरीकरण की प्रक्रिया ने आर्थिक क्रियाओं और संस्थाओं में भी अनेक परिवर्तन उत्पन्न कर दिये हैं। आज नगरों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हुए हैं, जो उत्पादन के केन्द्र बन गए हैं।
4. राजनीतिक क्षेत्र पर प्रभाव- नगरों में ही लगभग सभी राजनीतिक दलों के कार्यालय होते हैं और नगर ही उनकी गतिविधियों के केन्द्र हैं। वे कई आंदोलनों का प्रारम्भ नगरों से ही करते हैं। नगरों में सभी प्रकार के राजनीतिक दलों के अनुयायी पाए जाते हैं जो धरना, घेराव, हड़ताल करते हैं जिससे लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा हुई है।
5. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन
- शिक्षा के अधिकारों की प्राप्ति हुई।
- इस प्रक्रिया से स्त्रियों में चेतना का विकास हुआ है।
- अब इनकी पारिवारिक प्रस्थिति भी उच्च हुई है।
- नगरों में पंर्दा-प्रथा तथा घूघट प्रथा का प्रचलन भी लगभग समाप्त हो गया है।
6. विवाह पर प्रभाव
- जीवन साथी के चयन में अब परिवारों की सहमति के बजाय लड़के व लड़की की राय को महत्व दिया जाता है।
- अब पत्नी पति को परमेश्वर न मानकर एक मित्र व साथी मानने लगी है।
- बाल-विवाह कम हुए हैं।
- समाज में अब अविवाहित रहने तथा देर से विवाह करने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है।
- समाज में अब प्रेम विवाहों का चलन बढ़ा है।
- विवाह को अब धार्मिक संस्कार न मानकर उसे अब एक सामाजिक समझौते के रूप में देखा जाता है।
- Court Marriage का प्रचलन भी समाज में बढ़ा है।
- विवाह का उद्देश्य समाज में आनंद की प्राप्ति करना है।
नकारात्मक प्रभाव- नगरीकरण के नकारात्मक प्रभावों को निम्नलिखित विवरणों द्वारा समझा जा सकता है।
- अपराधों में वृद्धि-गाँवों की तुलना में नगरों में अपराध अधिक होते हैं। नगरों में परिवार, धर्म, पड़ोस एवं जाति के नियंत्रण में शिथिलता के कारण अपराधों में वृद्धि हो गयी है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव-नगरों में स्वच्छ वातावरण का अभाव होता है। वायु-प्रदूषण, स्थान की कमी, जनसंख्या में वृद्धि, अनेक बीमारियाँ तथा कारखानों का शोर आदि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
- सामाजिक विघटन-व्यक्तिवादिता के कारण नगरों में सामाजिक नियंत्रण शिथिल हुआ है। वहाँ परिवार, धर्म, ईश्वर तथा जाति के नियंत्रण के अभाव में समाज विरोधी कार्य • अधिक होते हैं। इससे सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलता है।
- आवास की समस्या-नगरों में एक ज्वलंत समस्या मकानों की है। नगरों में हवा एवं रोशनीदार मकानों का अभाव होता है। नगरीय क्षेत्रों में कई मकान तो बीमारियों के घर होते हैं।
- मानसिक तनाव एवं संघर्ष-नगरों में प्रतियोगिता की स्थिति बनी रहती है। हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से आगे निकलना चाहता है। यही स्थिति उसे मानसिक रूप से परेशान करती है तथा समाज में अनेक संघर्षों को उत्पन्न करती है।
- वेश्यावृत्ति की समस्या-नगरों में वेश्यावृत्ति अधिक पायी जाती है। वहाँ यौन रोग, एड्स, यौन अपराधों की अधिकता तथा नैतिक मूल्यों का पतन होता है।
- जनसंख्या वृद्धि-नगरों में जनसंख्या वृद्धि आज एक अहम् समस्या है। बढ़ती जनसंख्या ने यातायात, शिक्षा, प्रशासन एवं सुरक्षा की समस्या पैदा की है। सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना, यातायात एवं सुरक्षा के स्थान जुटाना व नगरों में प्रशासन चलाना एक कठिन कार्य हो गया है।
- भिक्षावृत्ति-नगरों में भिक्षावृत्ति अधिक है। सड़क के किनारे मंदिर, मस्जिद एवं धार्मिक स्थानों के पास, रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड एवं सार्वजनिक स्थानों पर भिखारियों की भीड़ देखी जा सकती है। भिक्षावृत्ति नगरों में व्याप्त गरीबी का सूचक है।